दाहोद. पंचमहाल जिले के पवित्र यात्राधाम पावागढ़ स्थित महाकाली माताजी के धाम में रविवार को सुबह के समय से ही माता के दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। सुबह के समय से ही यहां पर पावागढ़ की तलहटी में स्थित चांपानेर से लेकर पहाड़ पर माताजी के मंदिर तक श्रद्धालुओं की भीड़ देखी गई। सभी भक्तों की बस एक ही इच्छा थी कि वे कितनी जल्दी मां काली के दर्शन का लाभ ले पाएंगे। 500 वर्ष बाद महाकाली माताजी के मंदिर शिखर पर लहराती हुई ध्वजा को देखकर श्रद्धालु उनके चरणों में शीश झुकाने के लिए अपनी बारी का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। हाल ही में यात्राधाम पावागढ़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकाली माताजी के मंदिर के शिखर पर ध्वजा चढ़ाकर देश और दुनिया भर में बसे हुए मां काली के भक्तों की इच्छा पूरी कर दी है। अवकाश का दिन होने की वजह से यहां पर श्रद्धालुओं की यहां भारी भीड़ उमड़ी। इसकी वजह से सुबह से शाम तक यहां पर करीब दो लाख से ज़्यादा श्रद्धालुओं ने महाकाली माताजी के दर्शन किए। चार अवस्थाओं से होकर गुजरते हैं आध्यात्मिक साधक : सत्यश्रयानंदहिम्मतनगर. आनन्द मार्ग प्रचारक संघ की ओर से आयोजित प्रथम संभागीय सेमिनार के अवसर पर आनन्द मार्ग के केंद्रीय धर्म प्रचार सचिव आचार्य सत्यश्रयानंद अवधूत ने "साधना की चार अवस्थाएं" विषय पर प्रवचन दिया। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक साधना में मानवीय प्रगति एवं प्रत्याहार योग के चार चरण हैं यतमान, व्यतिरेक, एकेन्द्रिय एवं वशीकार। एक साधक को क्रम से इन चार अवस्थाओं से गुजरते हुए आगे बढऩा होता है। प्रथम अवस्था अर्थात यतमान में मानसिक वृत्तियॉ चित्त की ओर उन्मुख होती है। साधना के इस प्रयास में नकारात्मक प्रभावों या वृतियों को नियंत्रित करने का प्रयास होता है। साधक इनके खराब वृतियों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए इन पर विजय पाने की चेष्टा करता है और वृत्ति प्रवाह से अपने को हटा लेने का सतत प्रयास करता है। दूसरी अवस्था व्यतिरेक की है। व्यतिरेक में साधक की वृत्तियां मन के चित्त से अहम तत्व की और उन्मुख होती है। इसमें कभी प्रत्याहार होता है, कभी नहीं होता।
अहमदाबाद. Ahmedabad शहर में शुक्रवार को निकलने वाली Bhagwan jagannath भगवान जगन्नाथ की 145वीं Rathyatra रथयात्रा से पहले बुधवार को जमालपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर परिसर में traditional Netrotsav परंपरागत नेत्रोत्सव की विधि का आयोजन किया गया। इस दौरान बड़ी संख्या में जहां श्रद्धालु उमड़े वहीं साधु-संतों का अतिथि सत्कार किया गया। जलयात्रा के बाद लगभग एक पखवाड़े तक ननिहाल (सरसपुर) स्थित रणछोड़ राय मंदिर में रहने के बाद बहन सुभद्रा और बलदाऊ के साथ भगवान जगन्नाथ बुधवार को निज मंदिर (जगन्नाथ मंदिर) लौट आए। जहां सुबह नेत्रोत्सव विधि की गई। विधि के तहत भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बलदाऊ की आंखों पर पट्टी बांधी गई। उसके बाद ध्वजारोहण किया गया और फिर महाआरती हुई। जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया। मंदिर के मंहंत दिलीपदास महाराज एवं गृह मंत्री हर्ष संघवी ने महाआरती में भाग लिया। गुजरात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सी.आर. पाटिल एवं गृह मंत्री हर्ष संघवी ने भगवान की पूजा अर्चना की। बुधवार को गर्भ गृह के कपाट खुलने के साथ ही भगवान जगन्नाथ के जयकारों से मंदिर परिसर गूंज उठा। इस दौरान किए गए ध्वजा रोहण की रश्म में भी लोगों की खूब भीड़ हुई। भंडारे में बड़ी संख्या में पहुंचे साधु संतनेत्रोत्सव विधि के बाद मंदिर परिसर में भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें देश के विविध भागों से साधु-संतों ने हिस्सा लिया। इन साधुओं को भोजन के रूप में मालपुआ, दूधपाक, सब्जी, पूड़ी, चावल आदि व्यंजन परोसे गए। भोजन के बाद उन्हें वस्त्रदान किए गए। पूर्व उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल की ओर से वस्त्रों का दान किया गया। मंदिर परिसर में भोजन प्रसाद का लाभ आम श्रद्धालुओं ने भी लिया। ये है नेत्रोत्सव विधि चली आ रही परंपरा के अनुसार नेत्रोत्सव विधि में भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बलदाऊ की आंखों में दर्द होने के कारण पट्टी बांधी जाती है। रथयात्रा से दो दिन पहले वे निज मंदिर लौटते हैं उस दौरान यह विधि की जाती है। भगवान के दर्द को हरने के लिए प्रार्थना की जाती है और संतों को भोजन कराया जाता है। आंखों की पट्टी रथयात्रा के दिन सुबह खोली जाती है। और उसी दिन भगवान नगरभ्रमण करते हुए ननिहाल जाते हैं।